Slogan

No.201 सर्वतभावेन भगवत समर्पित शरणागत रहने चलने में ही व्यक्ति पूर्ति कीर्ति और मुक्ति तीनों वाला हो जाता है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.202 मंत्रों की नाजानकारी उतनी बुरी नहीं होती जितना बुरा की ना जानकारी होते हुए भी अपने को उसका जानकार बनना |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.203 जब तक आत्मा और परमात्मा का एकत्व बोध नहीं होगा तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.204 एक परम ब्रह्म परमेश्वर ही ऐसा परम सत्ता शक्ति है जो मोक्ष दे सकता है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.205 तत्वज्ञान परमात्मा के द्वारा ही तथा परमात्मा के साथ ही समय-समय पर प्रकट होता है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.206 परम ब्रह्म परमेश्वर अल्लाहताला गॉड शरीर नहीं है अपितु एक सर्वोच्च सत्ता शक्ति है जो अविनाशी है अजन्मा है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.207 दोष रहित - सत्यप्रधान मुक्ति - अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवन विधान ही " धर्म " है।

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.208 ॐ-सो हँ- हँ सो- शिव ज्योति भी भगवान नहीं , भगवान " परमतत्त्वम " है। स्वाध्याय, अध्यात्म , ही ज्ञान नहीं , ज्ञान " तत्त्वज्ञान " है।।

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.209 सोs हँ परमात्मा तो है ही नहीं; विशुद्धत: आत्मा भी नहीं है ; ये पतनोमुखी क्रिया है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.210 गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं , गायत्री कोई मन्त्र भी नहीं है | गायत्री तो मात्र एक छन्द है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.211 परमब्रम्ह से शब्दब्रह्म का ज्ञान मिलता है और शब्दब्रम्ह से परमब्रम्ह का पहचान होता है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.212 जीव ही आत्मा नहीं , आत्मा ही परमात्मा नहीं ........... सन्त ज्ञानेश्वरजी |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.213 रूह ही नूर नहीं , नूर ही अल्लाहताला नहीं ..........सन्त ज्ञानेश्वरजी |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.214 स्वाध्याय - अध्यात्म ही ज्ञान नहीं | ज्ञान " तत्त्वज्ञान " है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.215 दीन्हीं ज्ञान हर लीन्ही माया | सच्चे भगवदवतारी की पहचान है ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.216 गुरु करो दस - पांचा | जब तक मिले न सांचा ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.217 जीव को मोक्ष , जीवन को यश - कीर्ति | परमेश्वर वालों के पीछे रहती है फ़िरती - फ़िरती ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.218 पूर्ति - कीर्ति - मुक्ति परमेश्वर वालों के पीछे रहती है फ़िरती - फ़िरती |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.219 भक्त- सेवक भगवान का यात्री परमधाम का |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.220 गृहस्थ का जीवन मौत की प्रतीक्षा | भगवद भक्त - सेवक का जीवन परमधाम की यात्रा ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.221 ईमान - सच्चाई - संयम - सेवा , यही है सबसे सुन्दर मेवा | अपनाना हो अपना लो भाई , भगवन रहेंगे सदा सहाई | नहीं जानोगे नहीं समझोगे , जग में होगी तेरी हंसाई ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.222 पानी पियो छान कर | गुरु करो जानकर ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.223 झूठा गुरु अजगर भया , लख चौरासी जाय | चेला सब चींटी भये नोची - नोंची के खांय ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.224 शरीर - जीव - ईश्वर - परमेश्वर यथार्थत: ये चार हैं | चारों को दिखलाने और मुक्ति - अमरता देने हेतु भगवान सदानन्द लिये अवतार हैं |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.225 आडम्बर - ढोंग - पाखण्ड मिटावें | अपने को सत्पुरुष बनावें || "धर्मं - धर्मात्मा - धरती "की रक्षा में जुड़कर अपने मानव जीवन को सफल बनावें ||

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.226 जिद - हठ छोड़ो , झूठे गुरु से तुरन्त नाता तोड़ो | मुक्ति - अमरता परमप्रभु से तुरन्त नाता जोड़ो |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.227 ॐ-सो हँ- हँ सो- शिव ज्योति भी भगवान नहीं , भगवान " परमतत्त्वम " है | स्वाध्याय, अध्यात्म , ही ज्ञान नहीं , ज्ञान " तत्त्वज्ञान " है |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.228 ‘अन्तेन सहितः सः सन्तः ।’

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.229 कण -- कण में भगवान् -- यह घोर है अज्ञान | सबमें है भगवान् -- मूर्खतापूर्ण है यह ज्ञान |

BY: संत ज्ञानेश्वर जी