Slogan

No.1 परमात्मा ना कण कण में ना घट घट में होता है बल्कि परमात्मा परम धाम का वासी होता है और अवतारी बेला में अवतारी के शरीर से भूमंडल पर क्रियाशील होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.2 कोई भी परिवारिक सांसारिक व्यक्ति मोक्ष नहीं पा सकता मोक्ष के लिए भगवत समर्पण शरणागति अनिवार्य है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.3 ज्ञान मोह को काटता है और मोक्षदाता परम प्रभु में साटता है वैराग्य आसक्ति में फंसने से बचाता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.4 पहली शिक्षा, स्वाध्याय है दूसरा, तीसरा है योग अध्यात्म विधान तत्त्वज्ञान को चौथा जानो जिससे मिलता है खुदा–गॉड–भगवान l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.5 परमेश्वर की प्राप्ति तभी होती है जब जिज्ञासु प्रबल श्रद्धा भाव से सर्वतोभावेन सदगुरुदेव जी के माध्यम से अपने को भगवान को पूर्णता अर्पित कर दे l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.6 परमेश्वर नमक से लेकर परमधाम तक देता है किंतु है ईमान और संयम के साथ शरणागति को देखता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.7 जो समर्पित शरणागत होकर ईमान–सच्चाई से भक्ति सेवा में रहेगा उसे यहीं पर परमेश्वर प्रमोशन दे देता और वह परमेश्वर की समीपता प्राप्त कर लेता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.8 यदि आप मृत्यु क्षेत्र में बैठे हैं तो इससे निकलिए और अमरत्व के क्षेत्र में जुड़िए ऐसा कर पाने में आप तभी सफल हो सकेंगे जब आप धर्म से जुड़ेंगे l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.9 शिक्षा का अर्थ प्रधान होना ही भ्रष्टाचार का मूल कारण है अतः शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन होना परम आवश्यक है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.10 मिथ्यावादी विनाश को प्राप्त होता है और सत्यवादी लोक परलोक दोनों में उच्च स्थान प्राप्त करता है l

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No.11 वेद धन कमाने का साधन नहीं है बल्कि वेद हमको हमारा जीवन, वेद हमको सृष्टि का रहस्य, वेद हमको शरीर, जीव, ईश्वर और परमेश्वर का रहस्य बताने वाला एक सदग्रंथ है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.12 मुक्ति–अमरता का साक्षात बोध नहीं हो तो भगवान कैसा ? बातचीत सहित साक्षात दर्शन रूप भगवत प्राप्ति नहीं हो तो ज्ञान कैसा ? और जब ऐसा ज्ञान ही नहीं मिला तो वह गुरु कैसा ?

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.13 अध्यात्मिक योगियों का संगम योग साधना की अवस्था में इंगला पिंगला जब सम होकर सुषुम्ना तीनों नाड़ियों का मिलन होता है तब आत्मा–ईश्वर–ब्रह्म की प्राप्ति से अपार शांति आनंद रूप चिदानंद की प्राप्ति होती है इससे भी मुक्ति–अमरता रूप परम शांति की प्राप्ति संभव नही

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.14 भगवत ज्ञानियों का संगम यानी प्रभु की भक्ति तथा प्रभु से मिला सत्संग के पश्चात श्रद्धा समर्पण शरणागत रूपी नौका में बैठकर प्रभु तत्त्व का साक्षात्कार ज्ञान प्राप्ति से ही मुक्ति अमृता रूप परमशांति संभव है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.15 तत्त्वज्ञान किसी का विरोधी नहीं होता बल्कि सबका सहयोगी रूप संरक्षक और बिना किसी प्रतिकार के ही पूरक होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.16 परमात्मा–परमेश्वर का भूमंडल पर भगवदावतार गोपनीयता के साथ साथ आश्चर्यमय भी इसलिए होता है क्योंकि पूरे युग में एक समय एक ही बार भूमंडल पर अवतार रहता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.17 विज्ञान और अध्यात्म में भी अधूरा अपूर्ण मात्र तत्त्वज्ञान धर्म ही संपूर्ण तत्त्वज्ञान का जड़वाला भुजा विज्ञान, चेतन वाला भुजा अध्यात्म l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.18 तत्त्वज्ञान ही पूर्ण ज्ञान आशेष ज्ञान या सत्य ज्ञान या भगवत ज्ञान भी होता है यह सभी पर्यायवाची हैं l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.19 साधन से संसार मिलता है साधना से आत्मा ईश्वर ब्रह्म मिलता है और तत्त्वज्ञान जो साधन साधना दोनों का पिता संचालक होता है से भगवान मिलता है वह भी भगवत कृपा होगी तब l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.20 सत्यता से क्यों हटते हो ढोंग पाखंड से क्यों सटते हो तुझे आडंबर ढोंग खा जाएंगे तब यम के यहां जा पछताएंगे l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.21 ज्ञानी का जीवन माने पाप–कुकर्म से परे का जीवन, बुराई–विकृति से ऊपर परे का जीवन एक सच्चा, संतुष्टि प्रदान, संतोष प्रधान जीवन l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.22 तत्त्व से जानना तत्त्व को देखना तत्त्व में प्रवेश होना संपूर्ण को संपूर्णतया जानना देखना ये भगवदावतार का परिचय पहचान होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.23 देव द्रोहिता छोड़ दो सोSहँ से मुख मोड़ लो जीव, ईश्वर और परमेश्वर को जान देख संबंध जोड़ लो l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.24 अष्टांग योग का यथार्थत: जानकार केवल भगवदावतार ही होता है क्योंकि योग का अभीष्ट आत्मा–ईश्वर–ब्रह्म की उत्पत्ति कर्ता परमेश्वर होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.25 भक्तों को भगवान से हर पल क्षमा प्रार्थना करते रहना चाहिए कि प्रभु हमारा विवेक आपकी भक्ति सेवा में लगे और हम भगवदमय रहे l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.26 जनमानस ने आपको धर्म भाव दिया उसके बदले आप जनमानस को धर्म की वास्तविक जानकारी नहीं दे सकते तो आप धर्म उपदेशक कैसे ?

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.27 हम को अपना हमार (शरीर संपत्ति) को परमेश्वर के चरण शरण में समर्पित कर परमात्मा के परमभाव को जानते देखते समझते तथा बोध करते हुए परमात्मामय होकर रहना चाहिए l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.28 आदि में शब्द (वचन) था शब्द परमेश्वर के साथ था और शब्द ही परमेश्वर था l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.29 संपूर्ण को संपूर्णतया जानकारी कराने वाला चार विधान है जिसको शिक्षा, स्वाध्याय, अध्यात्म और तत्त्वज्ञान कहते हैं l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.30 गुरु गुरु के लिए नहीं बल्कि भगवत प्राप्ति के लिए किया जाता है गुरु मात्र पोस्टमैन डाकिया की तरह होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.31 ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं ! बिना ज्ञान के मुक्ति कदापि संभव नहीं है ज्ञान खिलता है वैराग्य से ज्ञान ठहरता है वैराग्य से l

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No.32 कामना के उत्पन्न होने का कारण शरीरस्थ जीव को संपूर्णतत्व से गिरकर अभावग्रस्त होना ही है l

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No.33 त्याज्य को त्याग कर धारण करने योग्य परमात्मा को धारण कर अपने जीवन को उसमें स्थित करना ही धर्म है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.34 कर्म और भोग के बीच का जीवन जहां का मालिकान माया के हाथ में होता है ऐसे क्षेत्र में रहकर मुक्ति अमरता कदापि संभव ही नहीं है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.35 धर्म और मोक्ष के वाला जीवन जहां का मालिकान पूर्णतया भगवान के हाथ में है इसी जीवन में ही मुक्ति अमरता रूप मोक्ष संभव है l

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No.36 संपूर्ण शंकाओं का समाधान केवल भगवदावतार ही कर सकता है दूसरा कोई नहीं l

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No.37 जीव का आत्मामय होने रहने वाला क्रियात्मक पद्धति को ही अध्यात्म विद्या–परा विद्या कहते हैं l

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No.38 योग–अध्यात्म के लिए शारीरिक एवं मानसिक शुद्धिकरण या पवित्रीकरण अनिवार्य है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.39 तन, मन, धन तीनों का भगवान के चरण शरण में समर्पित शरणागत करके निष्कपट भाव से भक्ति सेवा में लगा सेवक भगवान का अत्यंत प्रिय होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.40 सत्य ज्ञान के बगैर असत्य सत्य का यथार्थ ज्ञान होना कठिन ही नहीं अपितु असंभव ही होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.41 आत्मा एक आत्म ज्योति है तो परमात्मा आत्म ज्योति रूप आत्मा का उद्गम स्रोत तथा विलय कर्ता रूप है l

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No.42 धर्म–धर्मात्मा–धरती रक्षा यह धरती का सबसे सर्वोत्तम कार्य है जिसको संपादित करने स्वयं भगवान अवतरित होते हैं l

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No.43 धर्म–धर्मात्मा–धरती, सत्य–धर्म रक्षक को ही मुक्ति–अमरता और सर्वोत्तम यश–कीर्ति की प्राप्ति होती है l

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No.44 भगवान अवतार रूप सद्गुरु के तत्त्वज्ञान को जान देख प्राप्त करके अपने जीवन को पूर्णता समर्पित शरणागत कर उनकी चरण रज को अपने माथे (ललाट) पर लगाना ही वास्तविक टीका कहलाता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.45 परिवारिक पैसा और धर्म–मोक्ष–भगवान यह दोनों एक साथ कदापि संभव नहीं है जिसको परिवार, पैसा चाहिए उसको भगवान कदापि नहीं मिल सकता l

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No.46 शैतान रूप अहंकार को किसी भी तरह ठोकर मार–मार कर जगा–जगा कर समाप्त करना ही संत सद्गुरु का एकमात्र लक्ष्य कार्य होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.47 भगवत कृपा होता ही उसी पर है जो परमेश्वर के सिवाय कुछ भी और किसी को भी नहीं चाहता तत्त्वज्ञान उसे तभी मिल पाता है l

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No.48 मानव जीवन को पाकर के यदि भगवान नहीं पाए यदि मुक्ति–अमरता का साक्षात बोल नहीं पाए तो जीवन की अन्य सारी उपलब्धियां व्यर्थ हैं l

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No.49 अपने सदगुरु के रीति-रिवाजों परंपराओं की रक्षा करना कायम रखना ही शिष्य का प्रमुख कर्तव्य होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.50 धर्म विषयक जिज्ञासाओं का बोधगम्य में समाधान न पाने से एक सच्चा खोजी प्रायः नास्तिक हो जाता है नास्तिकता की समाप्ति तत्त्वज्ञान में है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.51 भगवत लीला को अनन्य प्रेमी, अनन्य भगवत–सेवक और अनन्य भगवत–भक्त मात्र ही जान समझ देख पहचान पाते हैं l

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No.52 सच्चा सद्गुरु अपने शिष्य को कभी नौकरी पेशा में रहने नहीं देता है बल्कि तन, मन, धन संपूर्ण का समर्पण कराकर धर्म धर्मात्मा धरती की रक्षार्थ भगवत भक्ति सेवा में लगाता है l

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No.53 युवक-युवतियों आगे आओ आडंबर–ढोंग–पाखंड मिटाओ अपने को सत पुरुष बनाओ l

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No.54 परमेश्वर–खुदा–गॉड ना तो कण-कण में और ना ही किसी के अंदर ही रहता है वह तो परमधाम–बिहिस्त–पैराडाइज का वासी है l

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No.55 तत्त्वज्ञान ही मानव जीवन का लक्ष्य मंजिल है तत्त्वज्ञान में ही मुक्ति अमरता का बोध है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.56 सत्संग वह विधान है जिसमें तत्त्वज्ञान मिलता है तत्त्वज्ञान में साक्षात भगवान मिलता है और वह भगवान मुक्ति अमरता का बोध कराता है l

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No.57 स्वार्थ पाप का जड़ है परोपकार पुण्य है तो भगवान का बनकर रहना चलना परमार्थ l

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No.58 सत्संग के बगैर भगवत प्राप्ति का कोई दूसरा विधान है ही नहीं जब भी भगवान मिलेगा तत्वत: मिलेगा सत्संग के पश्चात समर्पण शरणागत के पश्चात ही मिलेगा l

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No.59 सद्गुरु पूरे ब्रह्मांड में एक मात्र एक ही होता है क्योंकि वह परमात्मा –परमेश्वर –परमब्रम्ह –खुदा –गॉड –भगवान का पूर्ण अवतार होता है योग साधना वाले गुरु कभी भी सद्गुरु नहीं होते तत्त्वज्ञान दाता ही सद्गुरु होता है l

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No.60 पतनकारी भ्रामक और मिथ्या तथ्यों को उजागर करना निंदा या शिकायत करना नहीं अपितु समाज को सजग सावधान करते हुए पतन बिना से बचाना है l

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No.61 मूसा अल्लाहताला के प्रिय पैगंबर थे जिन्होंने अल्लाहताला का संदेश पैगाम यहूदियों को दिया था l

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No.62 अल्लाहताला का आदेश काटने का मतलब बिहिस्त के बाग अमरलोक से पतन मृत्यु लोक की प्राप्ति l

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No.63 महावीर, बुद्ध, यीशु और मोहम्मद साहब परमात्मा–परमेश्वर के संदेश वाहक (अंशा अवतारी) थे परमात्मा परमेश्वर नहीं l

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No.64 त्याग और समर्पण के बगैर अध्यात्म और तत्त्वज्ञान के सफलता की कल्पना करना भी घोर अज्ञानता एवं मूड़ता का सूचक और परिचायक है l

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No.65 जनमानस को ये बात जान लेना चाहिए कि ब्रह्मा ना तो कभी अवतार रहे हैं ना है और ना कभी होंगे फिर ब्रह्मा नाम से भगवदावतार की घोषणा करना समाज को दिग्भ्रमित करना नहीं तो और क्या है ?

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No.66 दुनिया का एक भी ऐसा सदग्रंथ नहीं है जो पूर्णत: सत्य और पूर्णत: असत्य हो l

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No.67 अहम् ब्रह्मास्मि से तात्पर्य मैं ब्रह्म से है यह लोग जीव को ही आत्मा या ब्रह्म मानने कहने तथा उसी का उपदेश भी करने लगते हैं ये अहंकारी व्यक्ति होते हैं l

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No.68 खुदा–गॉड–भगवान कोई यंत्र–मंत्र–तंत्र तो है ही नहीं वह अहम् ब्रह्मास्मि भी नहीं है l

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No.69 तत्त्वज्ञान रूप भगवत ज्ञान पाने के लिए हजारों मनुष्य में कोई एक ही यत्न करता है और उन यत्न करने वाले जिज्ञासुओ में भी कोई एक बिरला ही भगवत प्राप्त होकर भक्ति सेवा में उतरता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.70 तत्त्वज्ञान दाता सद्गुरु के पास ही अध्यात्म का संपूर्ण रहस्य सहित सृष्टि की संपूर्णतया जानकारी होती है l

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No.71 मानव जीवन की सफलता रोटी कपड़ा मकान रूपी भोग मात्र के पीछे दौड़ने में नहीं ! अपितु भगवत प्राप्ति सहित मोक्ष प्राप्ति में है l

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No.72 खुदा गॉड भगवान द्वारा तथा उसके निर्देशन या आज्ञा में ही होने वाले संपूर्ण कार्य ही सत्य ही होते हैं क्योंकि परमात्मा ही एकमात्र परम सत्य होता है l

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No.73 पूर्ति कीर्ति मुक्ति - तीनों वाला होने रहने चलने में ही मानव जीवन की सार्थकता है जो भगवत शरणागत हुए बगैर संभव ही नहीं l

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No.74 परमेश्वर के शरणागत होने रहने पर लोक और परलोक दोनों का निर्वाह बहुत ही सहजतापूर्वक हो जाता है लोग लाभ परलोक निबाहु परमेश्वर वालों को ही तो मिलता है l

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No.75 84 लाख योनियों चार भागों में है जड़ज, उदभीज, अंडज और पिंडज l

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No.76 घर परिवार संसार को छोड़कर भगवान के शरण में आने से किसी की भी कभी भी कोई मर्यादा नहीं गिरती अपितु सदा सर्वदा बढ़ती ही रहती है l

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No.77 परमात्मा परमेश्वर भगवान से उत्पन्न ब्रह्म ज्योति ही आत्मा ईश्वर ब्रह्म शिव है l

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No.78 आत्मा ईश्वर ब्रह्म शक्ति शिव का सर्व प्रथम खोजकर्ता शंकर जी हैं इसलिए शंकर जी शिव जी के नाम से भी जाने जाते हैं l

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No.79 धर्म पथ ज्ञान मार्ग में जितनी संघर्ष और कठिनाइयां हैं उतना ही सर्वोत्तम उपलब्धि भी है l

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No.80 भगवदावतार रूप सद्गुरु का आदेश पालन ही भक्त सेवकों की भक्ति सेवा है l

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No.81 तत्त्वज्ञान भगवान का परिचय पहचान होता है इसलिए उसका दाता केवल वही परमात्मा होता है l

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No.82 सहस्त्रों यत्नशील सिद्ध पुरुषों में कोई कोई ही तत्त्वज्ञान को प्राप्त कर सकता है l

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No.83 परिवारिक जीवन जीव के लिए मीठा जहर और ज्ञानमय जीवन परम शांति और परमानंद सहित मुक्ति अमरता दायक होता है l

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No.84 वास्तविक सत्य इतना आसान नहीं कि जो चाहे वही जना दिखा दे इसके लिए मात्र भगवदावतारी (सद्गुरु) ही सक्षम होता है |

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No.85 स्वार्थ और परमार्थ दो शब्द हैं स्वार्थ निंदनीय त्याज्य है तो परमार्थ बंदनीय ग्राहय है परिवार ही स्वार्थ का मूल है जहां स्वार्थ फलता–फूलता है परमेश्वर का क्षेत्र (आश्रम) ही पारमार्थिक क्षेत्र है जहां परमार्थ फलता–फूलता है |

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No.86 मुसल्लम ईमान से दीन की राह में जान व माल सहित कुर्बान होने के लिए हमेशा तैयार रहें वही सच्चा मुसलमान है |

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No.87 हे प्रभु आपके चरणो में कोटिश: कोटिश: प्रणाम प्रार्थना है कि अपने सेवक जनों को अनुशासित शरणागत बनाए रखें |

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No.88 ॐ और सोऽहँ परमात्मा तो है ही नहीं विशुद्धता; आत्मा भी नहीं है यह तो क्रमशः परमात्मा के पौत्र और पुत्र मात्र ही हैं l

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No.89 भगवदावतारी परम प्रभु का संदेश सुनते ही जीव का पहला कर्तव्य परम प्रभु के चरण शरण में जाना ही होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.90 अधूरा–अक्षम गुरु घातक और विनाशक गुरु होता है सक्षम और पूरा (सच्चा) गुरु तो मुक्ति–अमरता का साक्षात बोध दाता होता है l

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No.91 असत्य–ममता–मोह रूपी अंधकार, मृत्यु रूपी भव क्षेत्र त्यागकर सत्य–दिव्य ज्योति–ईश्वर को तथा अमरता के क्षेत्र–भगवत क्षेत्र को ग्रहण करने में ही जीवन की सार्थकता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.92 शरीर का सबसे पहले और सबसे बड़ा हित शुभचिंतक जीव ही है जीव के बाद ही घर–परिवार–संसार आपका हितदाई है l

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No.93 सभी पंथ–संप्रदाय वाले कहते हैं कि खुदा–गॉड–भगवान एक है फिर यह अनेक संप्रदाय, वर्ग भेदभाव क्यों ? सभी एक धर्म–एक भगवान–एक खुदा गॉड का क्यों नहीं ?

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.94 ग्रंथ किताब पढ़ रट करके जो सीखता है उसको ज्ञानी नहीं बल्कि विद्वान कहते हैं परमप्रभु–परमेश्वर–भगवान का तत्त्व दर्शन, परख–पहचान करने वाले भगवत कृपा पात्र को मात्र ही ज्ञानी कहते हैं l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.95 कोई भी मूर्ति भगवान या परमात्मा नहीं हो सकता बल्कि भगवदावतार के प्रतीक मात्र हैं l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.96 कोई भी मूर्ति–फोटो, मिट्टी, पत्थर, कागज जैसे जड़ पदार्थ से ही बनी होती है इसलिए वह जड़ पदार्थ ही होती है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.97 सत्य का परिचय–पहचान धन–जन, अट्टालिका, आश्रम की मात्रा संख्या से नहीं अपितु भगवदावतारी से प्राप्त तत्त्वज्ञान से होता है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.98 वेद की ऋचाएं पढ़ रट के परमेश्वर की प्राप्ति कदापि संभव नहीं है समस्त वेद उन परमात्मा की सेवा करने वाले उन्ही के अंग भूत पार्षद हैं l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.99 शिक्षा, स्वाध्याय, अध्यात्म और तत्त्वज्ञान इन चारों की सरहस्य जानकारी केवल सद्गुरु भगवदावतारी से ही प्राप्त होती है अन्य किसी से नहीं l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी


No.100 धर्म का चोला पहनकर धन उपार्जन करना ऐसो आराम करना धर्म नहीं है दोष–रहित, सत्य–प्रधान, मुक्ति–अमरता युक्त वाला सर्वोच्च जीवन विधान ही धर्म है l

BY: संत ज्ञानेश्वर जी