उत्तर:
सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss ! ये पाँचवा नहीं है। हर एक युग जाता है और दूसरा आता है तो दोनों का जो संधि समय है, मिलन बिन्दु है तो दोनों एक दूसरे को कुछ प्रभावित करते हैं। पिछला अगले में अगला पिछला में। वो जो प्रभावित समय है उसको संगम युग कहा जाता है इसी के दूसरे नाम को संधि बेला कहते हैं। संधि बेला कह दीजिये। संगम युग कह दीजिये। तो ये हर किसी में होता है। दो नदियाँ भी मिलेंगी, दो नदियाँ मिलेंगी तो मिलन बिन्दु पर कुछ दूर दोनों एक दूसरे को प्रभावित करके आगे जायेंगे तो संगम कहलायेगा। दो रेल लाइन मेलेंगे तो जंक्शन कहलायेगा। दोनों पटरियाँ कुछ भिन्न किस्म की होंगी। मिलन बिन्दु पर पहले से कुछ आगे तक दो ही पटरी नहीं होगी। तीन चार पटरियाँ होंगी कुछ दूर तक। फिर इसी तरह से रोडवेज मिला यानी हर लाइन में। देखिये जब आत्मा मिलेगा शरीर से, आत्मा और शरीर मिलेंगे तो आत्मा-चेतन, शरीर-जड़ दोनों कैसे क्रियाशील होंगे तो दोनों का जो मिलन बिन्दु होगा तो शरीर से रूप आकृति और आत्मा से क्रियाशीलता दोनों मिलकर के एक थर्ड भाग क्रियेट करते हैं, वो है जीव जो दोनों के बीच बीचौलिया का काम का काम करता है। इधर शरीर के और उधर आत्मा के, आत्मा से शरीर के जैसे ज्वाइंट है। इस माउथपीस और स्टैंड ये सुविधा के लिये ज्वाइंट न रहे तो ये दोनों कैसे जुड़ेंगे? कहीं भी दो चीज जब मिलेगा तो एक तीसरी वस्तु एक ज्वाइंट मिलेगा। वैसे ही दो युग मिल रहा है ये ज्वाइंट है। ज्वाइंट माने संगम युग।
उत्तर:
सन्त ज्ञानेश्वर जी:- द्वापर त्रेता नहीं, त्रेता द्वापर। सतयुग चार चरण वाला धर्म का, त्रेता तीन चरण वाला, द्वापर दो चरण वाला, कलयुग एक चरण। इसलिये सतयुग, त्रेता, द्वापर; द्वापर, त्रेता नहीं। एक दो तीन नहीं है, चार तीन दो एक है। ये गणना एक दो तीन नहीं है, चार तीन दो एक है। तो सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग, ऐसा है।
उत्तर:
सन्त ज्ञानेश्वर जी:- कभी नहीं। तीन मिलते रहते एक युग में। कलयुग है यानी सतयुग आ रहा है तो पीछे कलयुग जा रहा है तो आगे त्रेता प्रतीक्षा में है। जब सतयुग पूर्ण हो जायेगा तो पीछे कलयुग और आगे आने वाला है त्रेता, जब त्रेता आयेगा तो पीछे सतयुग ओर आगे आने वाला द्वापर, जब द्वापर जाने वाला होगा तो पीछे त्रेता और आगे आने वाला कलयुग, जब कलयुग आने वाला होगा तो पीछे द्वापर, आगे आने वाला सतयुग एक सर्किल है, इसी तरह से क्रमशः आता रहता है।
उत्तर:
सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भइया ! अभी तो आप शरीर बोल रही हो, दिखाई दे रहा है। जब खोजने चलोगी तो पता चलेगा कि जीव है। अभी तो दिखाई दे रहा है शरीर बोल रही है लेकिन शरीर बोलती नहीं है। जब खोजोगी, पाओगी तो दिखाई देने लगेगा कि जो हम बोल रहा है न, ‘हम’ शरीर नहीं जीव है। यही तो देखना चाहिये कि ‘हम’ कौन हैं। जब जीव से आगे बढ़ोगी कि जीव कहाँ से आ गया? तो पता चलेगा कि ये आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म था और माया के क्षेत्र में जब आया तो दोष-गुण से आवृत्त करके माया ने ही ईश्वर को जीव बना दिया। तो दोष-गुण से युक्त आत्मा जीव है और दोष-गुण से निवृत्त जीव आत्मा है। ये जो बोल रहा है जीव है मइया। आप भाग लो न, सब दिखलायेंगे। आप इसमें शरीक हो तो तेरे को जीव भी दिखलायेंगे और ईश्वर भी तुम्हें दिखलायेंगे। परमेश्वर तो तब तक नहीं दिखलायेंगे, जब तक समर्पण नहीं करोगी। लेकिन जीव ईश्वर दिखला देंगे। अरे भाग लो हम तेरे को ही दिखा देंगे मइया। तू क्या बकवास में पड़ी है। तू इसमें शरीक हो, हम तेरे को ईश्वर दिखा देंगे। अभी पास कर दे रहे हैं, भाग लो तेरे को ईश्वर दिखा देंगे। जीव भी तेरे को दिखायेंगे।