7. जय गुरुदेव और पंचनाम
तथाकथित भगवानों की भीड़ में एक भगवान् ऐसे भी हैं जिन्हें कि परमात्मा-परमेश्वर और उनके तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान का तो लेशमात्र भी कुछ अता ही पता नहीं, आत्मा-ईश्वर और उनकी जानकारी-प्राप्ति से सम्बन्धित योग-साधना अथवा अध्यात्म की भी कोई जानकारी नहीं। यहां तक कि जीव-रूह-सेल्फ-स्व-अहं और इसकी जानकारी-दर्शन प्राप्ति से सम्बन्धित स्वाध्याय की भी कोई जानकारी नहीं है । इतना ही नहीं, यहां एक बात और भी जानने का प्रयास करें कि इन्हें मन्त्र का भी अर्थ-भाव पता नहीं है कि मन्त्र कैसा होता है, किसलिये होता है, मन्त्र जाप का ढंग क्या है, अभीष्ट और अभीष्ट का मन्त्र एक का और एक होना चाहिए अथवा पांच आदि कुछ भी पता नहीं । ये तथाकथित भगवान जी, तथाकथित जयगुरुदेव महाशय जी हैं जो अपना नाम तो सन्त तुलसीदास बताते हैं ।
किसी भी तथाकथित सन्त-महात्मा-गुरु-सद्गुरु का खिलाफत अथवा निन्दा-आलोचना करने-लिखने का न तो मेरा आचरण-स्वाभाव है और न तो शौक ही । मगर असत्य-अधर्म विनाशक और सत्य-धर्म संस्थापक होने-रहने के कारण जहाँ कहीं भी सिध्दान्तत: और व्यवहार में भी असत्य-अधर्म तथा जनमानस के बीच धोखा-धड़ी, छल-कपट, धन और धरम भाव का दोहन-शोषण होने लगता है अथवा किया-कराया जाना शुरु हो जाता है, तब वहां पर ऐसा करने वाले ढ़ोंगी-आडम्बरी-पाखण्डी तथाकथित गुरुजन-सद्गुरुजन- धर्मोपदेशकों के वास्तविकता को जनमानस के समक्ष रखना ही पड़ता है । यहां पर भी सत्यता-वास्तविकता के आधार पर ही जनकल्याणार्थ तथाकथित जयगुरुदेव उर्फ सन्त तुलसीदास की वास्तविकता भी जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है, रखा जा रहा है।
हम यह महसूस कर रहे हैं कि मेरे उपर्युक्त कथनों से तथाकथित जयगुरुदेव के शिष्यों-अनुयायिओं को गुरु में आस्था-निष्ठा और गुरु भक्ति के चलते थोड़ा-बहुत दु:ख क्लेश अवश्य ही मिलेगा, मगर उन शिष्यों-अनुयायी बन्धुओं से मेरा साग्रह अनुरोध है कि आस्था-निष्ठा मात्र गुरु में नहीं अपितु खुदा-गॉड-भगवान् में होनी-रहनी चाहिये । भक्ति भी मात्र गुरु की नहीं अपितु भगवान् की ही होनी चाहिए । ऐसा कहने का अर्थ यह कदापि नहीं लगना चाहिए । ऐसा कहने का अर्थ यह कदापि नहीं लगाना चाहिये कि मैं 'गुरु द्रोही' हूं क्योंकि किसी भी जिज्ञासु भक्त का लक्ष्य-उद्देश्य गुरु खोजना-पाना नहीं होता बल्कि 'ज्ञान और भगवान्' खोजना-पाना होता है। गुरु तथाकथित सद्गुरु तो एक समय में ही हजारों हजार की संख्या में होते हैं और सभी तथाकथित गुरु-सद्गुरु ही अपने शिष्यों-अनुयायिओं में अपने को परमात्मा-परमेश्वर खुदा-गॉड-भगवान् और भगवान् का अवतार ही घोषित करते-कराते रहते हैं जबकि परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह खुदा-गॉड-भगवान् तो सदा-सर्वदा से ही केवल एकमेव 'एक' ही था, है और रहने वाला भी होता है । फिर तो इन हजारों-हजार तथाकथित गुरुजन-सद्गुरुजन रूपी तथाकथित भगवानों में से कोई भी एकमेव 'एक' ही तो सही होगा, शेष सभी तो झूठ ही तो होंगे।
अब आप बन्धुजन थोड़ा भी तो सोचने-विचारने का कष्ट करें कि उपर्युक्त पैरा की बातें क्या बिल्कुल ही सत्य पर आधारित नहीं हैं ? क्या वर्तमान में भी एक ही समय में ही हजारों-हजार तथाकथित गुरुजन-सद्गुरुजन रूप तथाकथित भगवान् जी लोग प्रकट नहीं हो गये हैं? पुन: एक बार आप सबसे पूछूं कि इन हजारों-हजार तथाकथित गुरुजन-सद्गुरुजन रूप तथाकथित भगवान् जी लोगों को-- सभी को ही भगवान् और भगवदवतार की मान्यता दे दिया जाय ? नहीं ! नहीं !! कदापि नहीं !!! ऐसा सम्भव भी नहीं है क्योंकि खुदा-गॉड-भगवान् सदा-सर्वदा से 'एक' ही था, 'एक' ही है और सदा-सर्वदा के लिये 'एक' ही रहने वाला भी होता है ।
गुरु-सद्गुरु बन-बना जाना तो बहुत ही आसान है, मगर गुरुत्त्व और सद्गुरुत्त्व के कर्तव्य का पालन करना उतना आसान नहीं होता जितना कि बनने वाले गुरु-सद्गुरुजी लोग मान बैठे हैं ।
तत्त्ववेत्ता परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस
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