6. गायत्री- श्रीराम शर्मा और देवद्रोहिता
देव मंत्र, गायत्री छन्द में वर्णित,
गायत्री कोई मंत्र नहीं, कोई देवी नहीं !
' ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।'
ॐ |
ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत |
भूर्भुव: स्व: |
भू: = (ब्रह्मा का) तीनों देवताओं के अलग-अलग निवास स्थान का संकेत है |
तत्सवितुर्वरेण्यं |
सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस |
भर्गो देवस्य |
तेजस्वरूप देव का |
धीमहि |
ध्यान करता हूँ |
धियो |
बुद्धि |
यो |
जिससे |
न: |
हमारी( (जिससे हमारी बुद्धि ) |
प्रचोदयात् |
शुद्ध रहे या उत्प्रेरित रहे |
किसी भी विषय-वस्तु के सत्यता का आधार और प्रमाण परम्परागत रूप से आता हुआ कोई विचारधारा नहीं हो सकता। जैसे तथाकथित गायत्री को ही ले लिया जाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि वास्तविकता क्या है। तथाकथित गायत्री देवी सही है यह कहना और प्रमाण पेश करना कि अमुक-अमुक ऋषियों ने अथवा अमुक-अमुक महापुरुषों ने भी गायत्री को स्वीकारा था, समर्थन दिया था, यह कोई महत्वपूर्ण आधार और प्रमाण नहीं हो सकता, कदापि नहीं हो सकता । महत्वपूर्ण आधार और प्रमाण तो, विषय-वस्तु की सत्यता है । सत्य है तो महत्व है 'सत्य' नहीं तो महत्व कैसा?
गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, मंत्र भी गायत्री का नहीं
प्रस्तुत शीर्षक पढ़-सुन कर निश्चित ही आप सबको जाने-अनजाने जो गायत्री में सटे-चिपके होंगे, उनको कष्ट हो रहा होगा, क्योंकि आप बहुत समय से ही इस मंत्र का श्रद्धाभाव से जाप करते चले आ रहे हैं और आप भावनात्मक रूप से इसमें लगे-चिपके हैं । यहाँ एकाएक सीधे ही उसे गलत कहते हुए काट (खण्डन) कर दिया जा रहा है । आप सब बन्धुओं से यहाँ पर एक बात कहूँ कि आप सबके श्रद्धा और उपासना पर चोट मारना अथवा आप सबको कष्ट पहुँचाने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है, मगर सत्य यही और ऐसा ही हो तो कहा क्या जाये ? क्या आप के समक्ष 'सत्य' को न रखा जाये ? नि:सन्देह यह सत्य ही है कि गायत्री न तो कोई देवी है और न कोई मन्त्र ही । हाँ! गायत्री छन्द अवश्य है। व्याकरण के अन्तर्गत छन्द मात्र ही । यहाँ पर आप पहले निष्पक्ष एवं तटस्थ भाव भावित होकर देखते हुए जानने-समझने का प्रयास करें और आप एक प्रश्न करें कि मन्त्र का अभीष्ट स्त्रीलिंग प्रधान है या ‘देवस्य’ पुल्लिंग प्रधान ?
एक बार पुन: आप सब से यही कहूँगा कि आप सब पढ़े-लिखे एक सुशिक्षित विद्वान हैं--संस्कृत के अच्छे जानकार भी हैं -- कोई क्या कहता है क्या नहीं --क्या गलत है क्या सही? आप प्रस्तुत मन्त्र को पहले यहाँ पर बार-बार पढ़िए । अर्थ करिये-समझिए । तत्पश्चात निर्णय कीजिए कि क्या यह-- ' ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।' मन्त्र स्त्री प्रधान है या पुरुष प्रधान ? मन्त्र का अभीष्ट देवी है या देव ? क्या यही उत्तर नहीं बनेगा कि मन्त्र का अभीष्ट ' ॐ देवस्य' पुरुष प्रधान है और मन्त्र का अभीष्ट देवी नहीं है बल्कि ॐ तेजोमय देव ही है, कोई भी प्रार्थना-पूजा-अराधना-उपासना जिसका भी करना हो चाहे जिस किसी का भी करना हो तो क्या यह सबसे जरूरी-सबसे आवश्यक नहीं है कि सबसे पहले इष्ट-अभीष्ट की सही-सही जानकारी प्राप्त कर लिया जाये कि 'वह कौन है' और 'वह कैसा है'। जब तक हम इष्ट-अभीष्ट को जानेंगे ही नहीं कि वह कौन है? और वह कैसा है ? गलत है कि सही है--तब तक उसकी प्रार्थना-पूजा-आराधाना-उपासना कर कैसे सकते हैं? नहीं कर सकते ! कदापि नहीं कर सकते !!
1. क्या यह सही ही नहीं है कि-- यह मन्त्र देवी का नहीं है, बल्कि ' ॐ देव' का है ?
2. क्या यह सही ही नहीं है कि इस मन्त्र का अभीष्ट स्त्री प्रधान देवी नहीं है बल्कि पुरुष प्रधान ॐ देव है ?
3. क्या यह सही ही नहीं है कि--गायत्री मात्र छन्द है और गायत्री छन्द में ॐ देव मन्त्र वर्णित है?
जब मन्त्र पुल्लिंग (पुरुष) प्रधान ॐ देव का है तो गायत्री देवी कहाँ से आ गयी ? क्या यह उचित और सही होगा कि मन्त्र के अभीष्ट 'ॐ देव' को विस्थापित कर या हटाकर उनके स्थान पर छन्द (गायत्री) की झूठी-काल्पनिक मूर्ति-फोटो-चित्र-आकृति देवी की बनाकर स्थित कर उसी का प्रचार-प्रसार किया-कराया जाये? क्या यहाँ 'ॐ-देव' विस्थापन रूप देव द्रोहिता ही नहीं है?
ब्रह्मा जी और श्रीविष्णु-राम-कृष्ण जी का नाम घसीटते हुए यह कहना कि ये लोग भी गायत्री देवी का समर्थन किये थे, स्वीकार किये थे--यह सरासर झूठी बात है । यदि ग्रन्थों में है भी तो यह श्रीराम शर्मा जैसे ही नकली-ढोंगी-आडम्बरी-पाखण्डी तथाकथित ऋर्षियों-लेखकों द्वारा ही उल्लिखित कर दिया गया है क्योंकि श्रीविष्णु -राम-कृष्ण जी के चाहे सैद्धांतिक पक्ष हों या व्यावहारिक पक्ष-कहीं भी और किसी के पक्ष में भी देव-द्रोहिता रूप दुर्गन्ध नहीं मिल सकता । कदापि नहीं मिल सकता क्योंकि ये श्रीविष्णुजी-श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी-- तीनों ही परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप खुदा-गॉड-भगवान के ही साक्षात् पूर्णावतार थे । इसलिए ऐसा देव द्रोहिता रूप दुष्कृत्य इन तीनों और ब्रह्मा जी पर भी नहीं साटना चाहिए क्योंकि तीनों ही अवतारी सत्पुरुष और ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता थे। यदि किसी के दुष्प्रयास से सट भी गया हो, तो भी उसे तत्काल ही अलग करके पढ़ने-जानने-समझने-ग्रहण करने का सत्प्रयास करना चाहिए क्योंकि देवद्रोहिता रूप असुरता ही त्याज्य और सत्यता और सर्वोच्चता-सर्वश्रेष्ठत्व सदा-सर्वदा ही ग्राह्य होना चाहिए । ग्राह्य होना ही चाहिए ।
इन उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर आप सब निश्चित ही जान-समझ गए होंगे कि गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, कोई मन्त्र भी नहीं । वह तो एक छन्द मात्र है । मन्त्र 'ॐ देव' का है और मन्त्र का अभीष्ट 'ॐ देव' ही है। यही सही है । इसे ही स्वीकार भी करना चाहिए ।
किसी भी संस्कृत भाषा वाले से मैं जानना चाहूँगा कि क्या गायत्री छन्द नहीं है ? निश्चित ही उन्हें कहना पडेग़ा कि छन्द ही है । पुन: पूछूँ कि मन्त्र स्त्रीलिंग सूचक या पुलिंग सूचक ? तो निश्चित ही उत्तर मिलेगा कि पुल्लिंग सूचक । पुन: पूछूँ कि फिर तब यह स्त्री रूपा गायत्री देवी कहाँ से आ गयी? तो सिवाय फालतू खींचतान के उनके पास इसका यथार्थत: कोई उत्तर नहीं । ॐ-देव मन्त्र के अभीष्ट देव को हटाकर--समाप्त करने का दुष्प्रयास करते हुए गायत्री छन्द के नाम पर काल्पनिक और झूठी स्त्री रूपा आकृति बना-बनवा कर समाज को वास्तविक ॐ-देव से विमुख क्यों किया जा रहा है ? अपने आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड को छोड़कर सत्यधर्म को स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है ?
श्रीराम शर्मा और उनका तथाकथित गायत्री परिवार वाले क्या मेरे इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे- कर सकेगें कि श्रीराम शर्मा वाले 'ब्रम्हवर्चस भवन (हरिद्वार में) ॐ देव मन्त्र (तथाकथित गायत्री मन्त्र) के चौबीस अक्षरों पर काल्पनिक और झूठी चौबीस देवियों की मूर्तियाँ बना-बनवा कर कि- ॐ देवी, भू: देवी, भुव: देवी, स्व: देवी, तत् देवी आदि-आदि जनमानस में झूठ ढोंग-आडम्बर-पाखण्ड की सभी सीमाओं को पार नहीं कर गए हैं ? क्या इससे भी बढ़कर देवद्रोहिता रूप असुरता का कोई कार्य हो सकता है ? ऐसा कौन सा असुर-राक्षस था जो शंकर अथवा देवी का भक्त न हो और देव द्रोही न हो । असुरता का यही तो एक मात्र लक्षण है--देव द्रोही होना और देवी-शंकर पूजक होना कि झूठी और काल्पनिक गायत्री देवी की झूठी और काल्पनिक आकृतियाँ-मूर्तियाँ गढ़-गढ़वा कर उसे इतना प्रचारित किया-कराया जाये---इतना प्रचारित किया-कराया जाय-- इतना प्रचारित किया-कराया जाये कि 'ॐ देव' भी कोई कुछ है, इसके अस्तित्व-मान्यता की भावना ही समाज से समाप्त हो जाये। क्या यह देव-द्रोहिता रूप घोर असुरता नहीं है ? क्या ऐसे कुकृत्य को इसलिए स्वीकार कर लिया जाये कि यह ऋषि परम्परा से चला आ रहा है और बड़े-बड़े आचार्य पण्डितों ने इसे मान्यता दिये अथवा स्वीकार किये हैं ? नहीं! नहीं !! कदापि नहीं !! ऋषि परम्परा यदि 'सत्य' के प्रतिकूल हो और 'ॐ देव' के खिलाफ हो तो उसे कभी भी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए और स्वीकार्य भी नहीं होना चाहिए ।
जो देवी स्वत: ही झूठ और कल्पना पर आधारित हो, उसकी पूजा-आराधाना कैसी ? उसकी पूजा-आराधना से लाभ क्या ? उसकी पूजा-अराधना भी क्या झूठी और काल्पनिक ही नहीं होगी ? और जब पूजा-अराधना करना ही कराना है तो 'ॐ देव' और उनके पितारूप परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् रूप खुदा-गॉड-भगवान् रूप परमसत्य का ही क्यों न किया कराया जाय ? सब भगवत् कृपा ।
तत्त्ववेत्ता परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस
'पुरुषोत्तम धाम आश्रम',
पुरुषोत्तम नगर- सिद्धौर, बाराबंकी-225 413 उ0 प्र0 (भारत)
दूरभाष: 05222346613, मोबाइल: 09196001364
6. गायत्री- श्रीराम शर्मा और देवद्रोहिता
देव मंत्र, गायत्री छन्द में वर्णित,
गायत्री कोई मंत्र नहीं, कोई देवी नहीं !
' ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।'
ॐ |
ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत |
भूर्भुव: स्व: |
भू: = (ब्रह्मा का) तीनों देवताओं के अलग-अलग निवास स्थान का संकेत है |
तत्सवितुर्वरेण्यं |
सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस |
भर्गो देवस्य |
तेजस्वरूप देव का |
धीमहि |
ध्यान करता हूँ |
धियो |
बुद्धि |
यो |
जिससे |
न: |
हमारी( (जिससे हमारी बुद्धि ) |
प्रचोदयात् |
शुद्ध रहे या उत्प्रेरित रहे |
किसी भी विषय-वस्तु के सत्यता का आधार और प्रमाण परम्परागत रूप से आता हुआ कोई विचारधारा नहीं हो सकता। जैसे तथाकथित गायत्री को ही ले लिया जाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि वास्तविकता क्या है। तथाकथित गायत्री देवी सही है यह कहना और प्रमाण पेश करना कि अमुक-अमुक ऋषियों ने अथवा अमुक-अमुक महापुरुषों ने भी गायत्री को स्वीकारा था, समर्थन दिया था, यह कोई महत्वपूर्ण आधार और प्रमाण नहीं हो सकता, कदापि नहीं हो सकता । महत्वपूर्ण आधार और प्रमाण तो, विषय-वस्तु की सत्यता है । सत्य है तो महत्व है 'सत्य' नहीं तो महत्व कैसा?
गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, मंत्र भी गायत्री का नहीं
प्रस्तुत शीर्षक पढ़-सुन कर निश्चित ही आप सबको जाने-अनजाने जो गायत्री में सटे-चिपके होंगे, उनको कष्ट हो रहा होगा, क्योंकि आप बहुत समय से ही इस मंत्र का श्रद्धाभाव से जाप करते चले आ रहे हैं और आप भावनात्मक रूप से इसमें लगे-चिपके हैं । यहाँ एकाएक सीधे ही उसे गलत कहते हुए काट (खण्डन) कर दिया जा रहा है । आप सब बन्धुओं से यहाँ पर एक बात कहूँ कि आप सबके श्रद्धा और उपासना पर चोट मारना अथवा आप सबको कष्ट पहुँचाने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है, मगर सत्य यही और ऐसा ही हो तो कहा क्या जाये ? क्या आप के समक्ष 'सत्य' को न रखा जाये ? नि:सन्देह यह सत्य ही है कि गायत्री न तो कोई देवी है और न कोई मन्त्र ही । हाँ! गायत्री छन्द अवश्य है। व्याकरण के अन्तर्गत छन्द मात्र ही । यहाँ पर आप पहले निष्पक्ष एवं तटस्थ भाव भावित होकर देखते हुए जानने-समझने का प्रयास करें और आप एक प्रश्न करें कि मन्त्र का अभीष्ट स्त्रीलिंग प्रधान है या ‘देवस्य’ पुल्लिंग प्रधान ?
एक बार पुन: आप सब से यही कहूँगा कि आप सब पढ़े-लिखे एक सुशिक्षित विद्वान हैं--संस्कृत के अच्छे जानकार भी हैं -- कोई क्या कहता है क्या नहीं --क्या गलत है क्या सही? आप प्रस्तुत मन्त्र को पहले यहाँ पर बार-बार पढ़िए । अर्थ करिये-समझिए । तत्पश्चात निर्णय कीजिए कि क्या यह-- ' ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।' मन्त्र स्त्री प्रधान है या पुरुष प्रधान ? मन्त्र का अभीष्ट देवी है या देव ? क्या यही उत्तर नहीं बनेगा कि मन्त्र का अभीष्ट ' ॐ देवस्य' पुरुष प्रधान है और मन्त्र का अभीष्ट देवी नहीं है बल्कि ॐ तेजोमय देव ही है, कोई भी प्रार्थना-पूजा-अराधना-उपासना जिसका भी करना हो चाहे जिस किसी का भी करना हो तो क्या यह सबसे जरूरी-सबसे आवश्यक नहीं है कि सबसे पहले इष्ट-अभीष्ट की सही-सही जानकारी प्राप्त कर लिया जाये कि 'वह कौन है' और 'वह कैसा है'। जब तक हम इष्ट-अभीष्ट को जानेंगे ही नहीं कि वह कौन है? और वह कैसा है ? गलत है कि सही है--तब तक उसकी प्रार्थना-पूजा-आराधाना-उपासना कर कैसे सकते हैं? नहीं कर सकते ! कदापि नहीं कर सकते !!
1. क्या यह सही ही नहीं है कि-- यह मन्त्र देवी का नहीं है, बल्कि ' ॐ देव' का है ?
2. क्या यह सही ही नहीं है कि इस मन्त्र का अभीष्ट स्त्री प्रधान देवी नहीं है बल्कि पुरुष प्रधान ॐ देव है ?
3. क्या यह सही ही नहीं है कि--गायत्री मात्र छन्द है और गायत्री छन्द में ॐ देव मन्त्र वर्णित है?
जब मन्त्र पुल्लिंग (पुरुष) प्रधान ॐ देव का है तो गायत्री देवी कहाँ से आ गयी ? क्या यह उचित और सही होगा कि मन्त्र के अभीष्ट 'ॐ देव' को विस्थापित कर या हटाकर उनके स्थान पर छन्द (गायत्री) की झूठी-काल्पनिक मूर्ति-फोटो-चित्र-आकृति देवी की बनाकर स्थित कर उसी का प्रचार-प्रसार किया-कराया जाये? क्या यहाँ 'ॐ-देव' विस्थापन रूप देव द्रोहिता ही नहीं है?
ब्रह्मा जी और श्रीविष्णु-राम-कृष्ण जी का नाम घसीटते हुए यह कहना कि ये लोग भी गायत्री देवी का समर्थन किये थे, स्वीकार किये थे--यह सरासर झूठी बात है । यदि ग्रन्थों में है भी तो यह श्रीराम शर्मा जैसे ही नकली-ढोंगी-आडम्बरी-पाखण्डी तथाकथित ऋर्षियों-लेखकों द्वारा ही उल्लिखित कर दिया गया है क्योंकि श्रीविष्णु -राम-कृष्ण जी के चाहे सैद्धांतिक पक्ष हों या व्यावहारिक पक्ष-कहीं भी और किसी के पक्ष में भी देव-द्रोहिता रूप दुर्गन्ध नहीं मिल सकता । कदापि नहीं मिल सकता क्योंकि ये श्रीविष्णुजी-श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी-- तीनों ही परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप खुदा-गॉड-भगवान के ही साक्षात् पूर्णावतार थे । इसलिए ऐसा देव द्रोहिता रूप दुष्कृत्य इन तीनों और ब्रह्मा जी पर भी नहीं साटना चाहिए क्योंकि तीनों ही अवतारी सत्पुरुष और ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता थे। यदि किसी के दुष्प्रयास से सट भी गया हो, तो भी उसे तत्काल ही अलग करके पढ़ने-जानने-समझने-ग्रहण करने का सत्प्रयास करना चाहिए क्योंकि देवद्रोहिता रूप असुरता ही त्याज्य और सत्यता और सर्वोच्चता-सर्वश्रेष्ठत्व सदा-सर्वदा ही ग्राह्य होना चाहिए । ग्राह्य होना ही चाहिए ।
इन उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर आप सब निश्चित ही जान-समझ गए होंगे कि गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, कोई मन्त्र भी नहीं । वह तो एक छन्द मात्र है । मन्त्र 'ॐ देव' का है और मन्त्र का अभीष्ट 'ॐ देव' ही है। यही सही है । इसे ही स्वीकार भी करना चाहिए ।
किसी भी संस्कृत भाषा वाले से मैं जानना चाहूँगा कि क्या गायत्री छन्द नहीं है ? निश्चित ही उन्हें कहना पडेग़ा कि छन्द ही है । पुन: पूछूँ कि मन्त्र स्त्रीलिंग सूचक या पुलिंग सूचक ? तो निश्चित ही उत्तर मिलेगा कि पुल्लिंग सूचक । पुन: पूछूँ कि फिर तब यह स्त्री रूपा गायत्री देवी कहाँ से आ गयी? तो सिवाय फालतू खींचतान के उनके पास इसका यथार्थत: कोई उत्तर नहीं । ॐ-देव मन्त्र के अभीष्ट देव को हटाकर--समाप्त करने का दुष्प्रयास करते हुए गायत्री छन्द के नाम पर काल्पनिक और झूठी स्त्री रूपा आकृति बना-बनवा कर समाज को वास्तविक ॐ-देव से विमुख क्यों किया जा रहा है ? अपने आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड को छोड़कर सत्यधर्म को स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है ?
श्रीराम शर्मा और उनका तथाकथित गायत्री परिवार वाले क्या मेरे इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे- कर सकेगें कि श्रीराम शर्मा वाले 'ब्रम्हवर्चस भवन (हरिद्वार में) ॐ देव मन्त्र (तथाकथित गायत्री मन्त्र) के चौबीस अक्षरों पर काल्पनिक और झूठी चौबीस देवियों की मूर्तियाँ बना-बनवा कर कि- ॐ देवी, भू: देवी, भुव: देवी, स्व: देवी, तत् देवी आदि-आदि जनमानस में झूठ ढोंग-आडम्बर-पाखण्ड की सभी सीमाओं को पार नहीं कर गए हैं ? क्या इससे भी बढ़कर देवद्रोहिता रूप असुरता का कोई कार्य हो सकता है ? ऐसा कौन सा असुर-राक्षस था जो शंकर अथवा देवी का भक्त न हो और देव द्रोही न हो । असुरता का यही तो एक मात्र लक्षण है--देव द्रोही होना और देवी-शंकर पूजक होना कि झूठी और काल्पनिक गायत्री देवी की झूठी और काल्पनिक आकृतियाँ-मूर्तियाँ गढ़-गढ़वा कर उसे इतना प्रचारित किया-कराया जाये---इतना प्रचारित किया-कराया जाय-- इतना प्रचारित किया-कराया जाये कि 'ॐ देव' भी कोई कुछ है, इसके अस्तित्व-मान्यता की भावना ही समाज से समाप्त हो जाये। क्या यह देव-द्रोहिता रूप घोर असुरता नहीं है ? क्या ऐसे कुकृत्य को इसलिए स्वीकार कर लिया जाये कि यह ऋषि परम्परा से चला आ रहा है और बड़े-बड़े आचार्य पण्डितों ने इसे मान्यता दिये अथवा स्वीकार किये हैं ? नहीं! नहीं !! कदापि नहीं !! ऋषि परम्परा यदि 'सत्य' के प्रतिकूल हो और 'ॐ देव' के खिलाफ हो तो उसे कभी भी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए और स्वीकार्य भी नहीं होना चाहिए ।
जो देवी स्वत: ही झूठ और कल्पना पर आधारित हो, उसकी पूजा-आराधाना कैसी ? उसकी पूजा-आराधना से लाभ क्या ? उसकी पूजा-अराधना भी क्या झूठी और काल्पनिक ही नहीं होगी ? और जब पूजा-अराधना करना ही कराना है तो 'ॐ देव' और उनके पितारूप परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् रूप खुदा-गॉड-भगवान् रूप परमसत्य का ही क्यों न किया कराया जाय ? सब भगवत् कृपा ।
तत्त्ववेत्ता परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस
'पुरुषोत्तम धाम आश्रम',
पुरुषोत्तम नगर- सिद्धौर, बाराबंकी-225 413 उ0 प्र0 (भारत)
दूरभाष: 05222346613, मोबाइल: 09196001364
6. गायत्री- श्रीराम शर्मा और देवद्रोहिता
देव मंत्र, गायत्री छन्द में वर्णित,
गायत्री कोई मंत्र नहीं, कोई देवी नहीं !
' ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।'
ॐ |
ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत |
भूर्भुव: स्व: |
भू: = (ब्रह्मा का) तीनों देवताओं के अलग-अलग निवास स्थान का संकेत है |
तत्सवितुर्वरेण्यं |
सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस |
भर्गो देवस्य |
तेजस्वरूप देव का |
धीमहि |
ध्यान करता हूँ |
धियो |
बुद्धि |
यो |
जिससे |
न: |
हमारी( (जिससे हमारी बुद्धि ) |
प्रचोदयात् |
शुद्ध रहे या उत्प्रेरित रहे |
किसी भी विषय-वस्तु के सत्यता का आधार और प्रमाण परम्परागत रूप से आता हुआ कोई विचारधारा नहीं हो सकता। जैसे तथाकथित गायत्री को ही ले लिया जाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि वास्तविकता क्या है। तथाकथित गायत्री देवी सही है यह कहना और प्रमाण पेश करना कि अमुक-अमुक ऋषियों ने अथवा अमुक-अमुक महापुरुषों ने भी गायत्री को स्वीकारा था, समर्थन दिया था, यह कोई महत्वपूर्ण आधार और प्रमाण नहीं हो सकता, कदापि नहीं हो सकता । महत्वपूर्ण आधार और प्रमाण तो, विषय-वस्तु की सत्यता है । सत्य है तो महत्व है 'सत्य' नहीं तो महत्व कैसा?
गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, मंत्र भी गायत्री का नहीं
प्रस्तुत शीर्षक पढ़-सुन कर निश्चित ही आप सबको जाने-अनजाने जो गायत्री में सटे-चिपके होंगे, उनको कष्ट हो रहा होगा, क्योंकि आप बहुत समय से ही इस मंत्र का श्रद्धाभाव से जाप करते चले आ रहे हैं और आप भावनात्मक रूप से इसमें लगे-चिपके हैं । यहाँ एकाएक सीधे ही उसे गलत कहते हुए काट (खण्डन) कर दिया जा रहा है । आप सब बन्धुओं से यहाँ पर एक बात कहूँ कि आप सबके श्रद्धा और उपासना पर चोट मारना अथवा आप सबको कष्ट पहुँचाने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है, मगर सत्य यही और ऐसा ही हो तो कहा क्या जाये ? क्या आप के समक्ष 'सत्य' को न रखा जाये ? नि:सन्देह यह सत्य ही है कि गायत्री न तो कोई देवी है और न कोई मन्त्र ही । हाँ! गायत्री छन्द अवश्य है। व्याकरण के अन्तर्गत छन्द मात्र ही । यहाँ पर आप पहले निष्पक्ष एवं तटस्थ भाव भावित होकर देखते हुए जानने-समझने का प्रयास करें और आप एक प्रश्न करें कि मन्त्र का अभीष्ट स्त्रीलिंग प्रधान है या ‘देवस्य’ पुल्लिंग प्रधान ?
एक बार पुन: आप सब से यही कहूँगा कि आप सब पढ़े-लिखे एक सुशिक्षित विद्वान हैं--संस्कृत के अच्छे जानकार भी हैं -- कोई क्या कहता है क्या नहीं --क्या गलत है क्या सही? आप प्रस्तुत मन्त्र को पहले यहाँ पर बार-बार पढ़िए । अर्थ करिये-समझिए । तत्पश्चात निर्णय कीजिए कि क्या यह-- ' ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।' मन्त्र स्त्री प्रधान है या पुरुष प्रधान ? मन्त्र का अभीष्ट देवी है या देव ? क्या यही उत्तर नहीं बनेगा कि मन्त्र का अभीष्ट ' ॐ देवस्य' पुरुष प्रधान है और मन्त्र का अभीष्ट देवी नहीं है बल्कि ॐ तेजोमय देव ही है, कोई भी प्रार्थना-पूजा-अराधना-उपासना जिसका भी करना हो चाहे जिस किसी का भी करना हो तो क्या यह सबसे जरूरी-सबसे आवश्यक नहीं है कि सबसे पहले इष्ट-अभीष्ट की सही-सही जानकारी प्राप्त कर लिया जाये कि 'वह कौन है' और 'वह कैसा है'। जब तक हम इष्ट-अभीष्ट को जानेंगे ही नहीं कि वह कौन है? और वह कैसा है ? गलत है कि सही है--तब तक उसकी प्रार्थना-पूजा-आराधाना-उपासना कर कैसे सकते हैं? नहीं कर सकते ! कदापि नहीं कर सकते !!
1. क्या यह सही ही नहीं है कि-- यह मन्त्र देवी का नहीं है, बल्कि ' ॐ देव' का है ?
2. क्या यह सही ही नहीं है कि इस मन्त्र का अभीष्ट स्त्री प्रधान देवी नहीं है बल्कि पुरुष प्रधान ॐ देव है ?
3. क्या यह सही ही नहीं है कि--गायत्री मात्र छन्द है और गायत्री छन्द में ॐ देव मन्त्र वर्णित है?
जब मन्त्र पुल्लिंग (पुरुष) प्रधान ॐ देव का है तो गायत्री देवी कहाँ से आ गयी ? क्या यह उचित और सही होगा कि मन्त्र के अभीष्ट 'ॐ देव' को विस्थापित कर या हटाकर उनके स्थान पर छन्द (गायत्री) की झूठी-काल्पनिक मूर्ति-फोटो-चित्र-आकृति देवी की बनाकर स्थित कर उसी का प्रचार-प्रसार किया-कराया जाये? क्या यहाँ 'ॐ-देव' विस्थापन रूप देव द्रोहिता ही नहीं है?
ब्रह्मा जी और श्रीविष्णु-राम-कृष्ण जी का नाम घसीटते हुए यह कहना कि ये लोग भी गायत्री देवी का समर्थन किये थे, स्वीकार किये थे--यह सरासर झूठी बात है । यदि ग्रन्थों में है भी तो यह श्रीराम शर्मा जैसे ही नकली-ढोंगी-आडम्बरी-पाखण्डी तथाकथित ऋर्षियों-लेखकों द्वारा ही उल्लिखित कर दिया गया है क्योंकि श्रीविष्णु -राम-कृष्ण जी के चाहे सैद्धांतिक पक्ष हों या व्यावहारिक पक्ष-कहीं भी और किसी के पक्ष में भी देव-द्रोहिता रूप दुर्गन्ध नहीं मिल सकता । कदापि नहीं मिल सकता क्योंकि ये श्रीविष्णुजी-श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी-- तीनों ही परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप खुदा-गॉड-भगवान के ही साक्षात् पूर्णावतार थे । इसलिए ऐसा देव द्रोहिता रूप दुष्कृत्य इन तीनों और ब्रह्मा जी पर भी नहीं साटना चाहिए क्योंकि तीनों ही अवतारी सत्पुरुष और ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता थे। यदि किसी के दुष्प्रयास से सट भी गया हो, तो भी उसे तत्काल ही अलग करके पढ़ने-जानने-समझने-ग्रहण करने का सत्प्रयास करना चाहिए क्योंकि देवद्रोहिता रूप असुरता ही त्याज्य और सत्यता और सर्वोच्चता-सर्वश्रेष्ठत्व सदा-सर्वदा ही ग्राह्य होना चाहिए । ग्राह्य होना ही चाहिए ।
इन उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर आप सब निश्चित ही जान-समझ गए होंगे कि गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, कोई मन्त्र भी नहीं । वह तो एक छन्द मात्र है । मन्त्र 'ॐ देव' का है और मन्त्र का अभीष्ट 'ॐ देव' ही है। यही सही है । इसे ही स्वीकार भी करना चाहिए ।
किसी भी संस्कृत भाषा वाले से मैं जानना चाहूँगा कि क्या गायत्री छन्द नहीं है ? निश्चित ही उन्हें कहना पडेग़ा कि छन्द ही है । पुन: पूछूँ कि मन्त्र स्त्रीलिंग सूचक या पुलिंग सूचक ? तो निश्चित ही उत्तर मिलेगा कि पुल्लिंग सूचक । पुन: पूछूँ कि फिर तब यह स्त्री रूपा गायत्री देवी कहाँ से आ गयी? तो सिवाय फालतू खींचतान के उनके पास इसका यथार्थत: कोई उत्तर नहीं । ॐ-देव मन्त्र के अभीष्ट देव को हटाकर--समाप्त करने का दुष्प्रयास करते हुए गायत्री छन्द के नाम पर काल्पनिक और झूठी स्त्री रूपा आकृति बना-बनवा कर समाज को वास्तविक ॐ-देव से विमुख क्यों किया जा रहा है ? अपने आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड को छोड़कर सत्यधर्म को स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है ?
श्रीराम शर्मा और उनका तथाकथित गायत्री परिवार वाले क्या मेरे इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे- कर सकेगें कि श्रीराम शर्मा वाले 'ब्रम्हवर्चस भवन (हरिद्वार में) ॐ देव मन्त्र (तथाकथित गायत्री मन्त्र) के चौबीस अक्षरों पर काल्पनिक और झूठी चौबीस देवियों की मूर्तियाँ बना-बनवा कर कि- ॐ देवी, भू: देवी, भुव: देवी, स्व: देवी, तत् देवी आदि-आदि जनमानस में झूठ ढोंग-आडम्बर-पाखण्ड की सभी सीमाओं को पार नहीं कर गए हैं ? क्या इससे भी बढ़कर देवद्रोहिता रूप असुरता का कोई कार्य हो सकता है ? ऐसा कौन सा असुर-राक्षस था जो शंकर अथवा देवी का भक्त न हो और देव द्रोही न हो । असुरता का यही तो एक मात्र लक्षण है--देव द्रोही होना और देवी-शंकर पूजक होना कि झूठी और काल्पनिक गायत्री देवी की झूठी और काल्पनिक आकृतियाँ-मूर्तियाँ गढ़-गढ़वा कर उसे इतना प्रचारित किया-कराया जाये---इतना प्रचारित किया-कराया जाय-- इतना प्रचारित किया-कराया जाये कि 'ॐ देव' भी कोई कुछ है, इसके अस्तित्व-मान्यता की भावना ही समाज से समाप्त हो जाये। क्या यह देव-द्रोहिता रूप घोर असुरता नहीं है ? क्या ऐसे कुकृत्य को इसलिए स्वीकार कर लिया जाये कि यह ऋषि परम्परा से चला आ रहा है और बड़े-बड़े आचार्य पण्डितों ने इसे मान्यता दिये अथवा स्वीकार किये हैं ? नहीं! नहीं !! कदापि नहीं !! ऋषि परम्परा यदि 'सत्य' के प्रतिकूल हो और 'ॐ देव' के खिलाफ हो तो उसे कभी भी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए और स्वीकार्य भी नहीं होना चाहिए ।
जो देवी स्वत: ही झूठ और कल्पना पर आधारित हो, उसकी पूजा-आराधाना कैसी ? उसकी पूजा-आराधना से लाभ क्या ? उसकी पूजा-अराधना भी क्या झूठी और काल्पनिक ही नहीं होगी ? और जब पूजा-अराधना करना ही कराना है तो 'ॐ देव' और उनके पितारूप परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् रूप खुदा-गॉड-भगवान् रूप परमसत्य का ही क्यों न किया कराया जाय ? सब भगवत् कृपा ।
तत्त्ववेत्ता परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस
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