Refrence: समाधि
शव्द: समाधि
अर्थ: समाधि से तात्पर्य जीव का ध्यान-साधना से आत्म-ज्योति रूप आत्मा से मिलकर आत्मामय स्थिति में रहने से है। अर्थात् साधना द्वारा शरीस्थ जीव का कुण्डलिनी की उर्ध्वगति से भू-मध्य स्थिति आज्ञा-चक्र में आत्म-ज्योति रूप आत्मा से मिलकर आत्मामय होकर स्थिति रहने का नाम ही समाधि है। यह अष्टांग योग का आठवां और अन्तिम अंग या सोपान है। योग की समस्त क्रियायों की अन्तिम परिणति ही समाधि है। समाधिस्थ पुरुष बाह्य समस्त क्रियायों से शून्य होकर आत्म-ज्योति या दिव्य-ज्योति या ब्रह्म-ज्योति से मिलकर स्वयं भी ज्योतिर्मय होकर समाधि भंग तक शान्ति और आनन्द से युक्त चिदानन्द की अनुभूति में पड़े रहते हैं। परमात्मा के अलावा यह सृष्टि का सबसे श्रेष्ठ, सबसे उच्च तथा सबसे उत्तम अवस्था या पद होता है। इससे उच्च, श्रेष्ठ और उत्तम परमात्मा तथा परमात्मा के प्रेमी, सेवक तथा ज्ञानी यानी परमात्मा तथा परमात्मा के जानकार अनुयायी ही होते हैं और कोई अन्य नहीं। इस अवस्था को प्राप्त साधक ही सिद्ध योगी-ऋषि, महर्षि, राजर्षि तथा अध्यात्मवेत्ता भी होता है। मात्र तत्त्वज्ञानदाता तथा उनका अनुयायी तत्त्वज्ञानी ही इससे श्रेष्ठ है।