Refrence: कुम्भक

शव्द: कुम्भक

अर्थ: शरीर के भीतर या बाहर,स्वास या प्रस्वास, रेचक या पूरक की यथा स्थान रोक रखना ही कुम्भक है। कुम्भक ही वह क्रिया-प्रक्रिया है जिसके द्वारा रेचक और पूरक की आवश्यकता तथा महत्व की यथार्थता की अनुभूति कराता या यथार्थता को आभासित करता है। कुम्भक-क्रिया करने से रेचक तथा पूरक की क्षमता एवं शक्ति-सामर्थ्य में असाधारण गतिं से वृद्धि होती है। कुम्भक-क्रिया का अभ्यासी और सिद्ध शरीर इतनी ताकतवर या बलवान तथा गम्भीर हो जाती है कि जीप-ट्रक को क्या कहा जाय ।स्टीमर या रेल इंजन को भी चुनौती दी जाती रही है। गरिमा सिद्धि की प्राप्ति भी कुम्भक क्रिया से ही प्राप्त होती है। पाठक बंधुओं ऐसा संसार में कोई प्राणी नहीं है जो कठिन श्रम या भार या बल संबंधी कार्यों में बिना कुम्भक के सहारे कार्य सम्पन्न कर पता हो। आप स्वयं अनुभव करें कि किसी भर को उठाने या धक्का देने या अचानक बल प्रयोग में स्वतः ही क्षणिक कुम्भक हो जा रहा है कि नहीं। तो देखने में आयेगा कि हो रहा है। इतना ही नहीं, आप सुनते भी होंगे कि झट से कह दिया जाता है कि इनका ‘दम’ टूट गया। जरा सोंचे कि ‘दम’ क्या था ? जो रेचक तथा पूरक में परिवर्तित हो गयी। बंधुओं इतना ही नहीं बारम्बार तेजी के साथ जब रेचक-पूरक होने लगता है तो यह भी कह दिया जाता है कि इनका ‘दम’ फूल रहा है अर्थात् हार या थक गये हैं अर्थात् दम या कुम्भक टूट गया है। यह बात अवश्य ही ज्ञेय या जानने योग्य है कि दम या कुम्भक बल, गम्भीरता आदि स्थिर ताकत या शक्ति का ही पर्याय होता है।