Refrence: पूरक
शव्द: पूरक
अर्थ: पूरक-क्रिया शरीर की प्राण-वायु मात्र ही नहीं,अपितु प्राण-वायु के साथ आत्म-शक्ति (सः) भी पूरक-क्रिया के अन्तर्गत शरीर में प्रवेश करती है ।अब इससे समझ लेना चाहिये कि शरीर हेतु पूरक की कितनी आवश्यकता है ।शरीर के अन्दर ली जाने वाली अथवा प्रवेश करने वाली प्राण-वायु की प्रवेश करने वाली क्रिया ही पूरक है ।पूरक का सामान्य अर्थ भी है –कमी को पूरा करना ।पूरक वह क्रिया है जिसके द्वारा जीव को क्रियाशील होने हेतु आत्म-शक्ति प्राप्त होती या मिलती रहती है ।यह आत्म-शक्ति परमात्मा से चलकर प्राण-वायु के साथ पूरक-क्रिया के रूप में नासिका छिद्रों से शरीर में प्रवेश कर मूलाधार में पहुँचकर जीव रूप में परिवर्तित होकर या जीव रूप धारण कर शरीर को चलाता या क्रियाशील करता रहता है जिसकी यथार्थतः जानकारी करने और रखने वाला व्यक्ति तो योगी-यति,ऋषि-महर्षि तथा आध्यात्मिक साधक-सिद्ध,सन्त-महात्मा ,आलिम-औलिया,पीर-पैगम्बर,पादरी,प्राफेट्स आदि आदि कहलाते हैं और नाजानकार तथा मात्र कर्मो में जकड़ा हुआ व्यक्ति सांसारिक या गृहस्थ-वर्ग का कहलाता है।