Refrence: आसन
शव्द: आसन
अर्थ: आसन योग का तीसरा सोपान या तीसरा अंग है जिसके द्वारा शरीर हष्ट-पुष्ट एवं नाडियाँ योग-साधना के योग्य बनती है। आसन शारीरिक गठन मात्र के लिये ही नहीं, अपितु योग-साधना की एक अनिवार्य कड़ी है। साधक के लिये आसनों की यथार्थ जानकारी तथा उसी के अनुसार अभ्यास करने से शरीर चुस्त और दुरुस्त तो होती ही रहती है, अन्तःकरणमें तेजी भी बढ़ता है जिसके माध्यम से सिद्धियाँ भी आकर सेविका का कार्य करती है, हालाँकि यथार्थ योगीया सिद्ध-साधक सिद्धियों के चक्कर में न पड़कर सदा अपने लक्ष्य की ओर दृष्टि लगाये रखता हैपरन्तु सामान्य साधक जन पथ-भ्रष्ट होकर चमत्कार के रूप में फंस-फंसाकर चमत्कार प्रदर्शन में लग जाते हैं जो योग सिद्धि को समाप्त करने या होने के लिये पर्याप्त है। जहाँ तक योग-साधना का सवाल है आसन को अनिवार्यतः अंग मानना ही पड़ेगा। आसन ही वह शारीरिक क्रिया है जो नस-नाड़ियोंको अपने मनमाना गति-विधियों से नियंत्रित रखते हुये साधना हेतु उत्प्रेरित करता है।