Refrence: ईश्वर-प्राणिधान
शव्द: ईश्वर-प्राणिधान
अर्थ: ईश्वर-प्राणिधान से तात्पर्य ‘अपने’ को ईश्वर के भक्ति में लगाने’ से है। इसके अन्तर्गत ‘ईश्वरीय-धारणा’ करनी पड़ती है। यह स्वाध्याय से ऊपर (उत्तम या श्रेष्ठ) विधान होता है क्योंकि स्वाध्याय एक अहंकारिक पद्धति या विधान होता है जब कि ईश्वर-प्राणिधान ‘स्व’ को ‘ईश्वर’ के प्रति मिलाने तथा भक्ति करने-कराने का विधान है। ईश्वर प्राणिधान के अन्तर्गत साधक व्यक्ति को अपने ‘स्व’ रूप ‘जीव’ को अन्य सांसारिक विधानों से खींचकर आत्मा या ईश्वर में लगाना पड़ता है। बार-बार अपने चित्त को बाह्य वृतियों से समेट कर ईश्वर-भक्ति के प्रति लगाना पड़ता है। इसीलिए इसे ईश्वर-प्राणिधान नाम से जाना जाता है।