Refrence: सन्त
शव्द: सन्त
अर्थ: सन्त का सामान्यत: अर्थ तो लोग भगवद नाम कीर्तन-भजन-सन्यास रूप में करने वाले को, तपस्वी को, ब्रह्मचारी को, योगी-साधक-सिद्ध-महात्मा को, अध्यात्मवेत्ता को आदि आदि को से लगाया करते हैं, मगर वास्तव में यथार्थत: सन्त का भाव – ‘अन्तेन सहित: स सन्त: ।’ अर्थात ‘अन्त सहित जो, वह ही सन्त है ।’ दूसरे शब्दों में जिस भगवत्ता से सम्पूर्ण सृष्टी या अखिल ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई हो, जिस भगवत्ता से सम्पूर्ण सृष्टी संचालित हो तथा अन्तत: जिस भगवत्ता में सम्पूर्ण सृष्टी लय-विलय कर जाती है, उस ही; एकमात्र उस ही भगवत्ता के यथार्थत: ज्ञान से युक्त रहता है, वास्तव में वह ही एकमात्र सन्त होता-रहता है । सन्त रूप में या तो खुद भगवान ही होता रहता है अथवा अनन्य भगवद प्रेमी, अनन्य भगवद सेवक, अनन्य भगवद भक्त अवं अनन्य भगवद ज्ञानी मात्र ही होता- रहता-आता है ।