Refrence: अनहद्-नाद
शव्द: अनहद्-नाद
अर्थ: आत्म-ज्योति के अन्तर्गत होती रहने वाली दिव्य-ध्वनि को श्रवण करने वाली क्रिया प्रक्रिया ही अनहद्-नाद है। यह क्रिया-प्रक्रिया सदा-सर्वदा निरन्तर धुन के रूप में असीम (कितने प्रकार की ध्वनि इसमें निहित रहती है अब तक निश्चित नहीं हो सका है। ) रूप में होता रहता है अर्थात यह सीमा से रहित होता है, इसीलिए इसे अनहद्-नाद कहा जाता है। यह दिव्य-ध्वनि दिव्य-आनन्द से युक्त होती है, जिसे योगी लोग कानों को बन्द कर-कर के सुना करते हैं