Refrence: अमृत-पान

शव्द: अमृत-पान

अर्थ: प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में जिह्वा-मूल के ऊपर एक कण्ठ-कूप होता है। इस कूप को अमृत-कूप भी कहते हैं। गर्भस्थ शिशु की जिह्वा, जिह्वा-मूल से ही ऊपर उठकर उसी कण्ठ-कूप में पड़ी रहती है और शिशु अमृत-पान करता रहता है। बाहय व्यवहार से सिमटकर इंद्रियाँ अन्तरमुखी होकर ध्यान के अन्दर रहते हुये जिह्वा को खींचकर जिह्वा-मूल से ऊपर कण्ठ-कूप में स्थिर करने वाली पद्धति ही खेंचरी मुद्रा या अमृत-पान कहलाता है, जो गर्भस्थ शिशु का स्वतः ही होता रहता है।